*ई अटेंडेंस व्यवस्था व्यावहारिक नहीं और मानवीय संवेदनाओं का भी ध्यान नहीं*
ई अटेंडेंस व्यवस्था व्यावहारिक नहीं और मानवीय संवेदनाओं का भी ध्यान नहीं
सौरभ नाथ की खबर 9039502565
एक जुलाई से प्रदेश के समस्त विद्यालयों में हमारे शिक्षक एप के माध्यम से शिक्षकों की ई अटेंडेंस व्यवस्था लागू करने के निर्देश के बाद शिक्षकों में रोष व्याप्त हो गया है। निर्देश के अनुसार यदि शिक्षक स्कूल खुलने और बंद होने के समय अपने मोबाइल से उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाता है तो उससे बिना कोई स्पष्टीकरण लिए सीधे वेतन काटने की व्यवस्था बनाई गई है। एक प्रकार से यह व्यवस्था मानवीय मूल्यों को दर किनार कर इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों के हवाले कर दी गई है। मोटी तनख्याह लेने वाले उच्चाधिकारियों की कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह है।शिक्षकों का कहना है कि शहर के विद्यालयों को छोड़कर यदि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों विशेषकर ट्राइबल क्षेत्र के विद्यालयों पर गौर किया जाए तो 40 प्रतिशत से अधिक शिक्षक बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में अपनी सेवाएं दे रहें हैं। आज भी शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक आवास के अभाव के चलते पहाड़ी और दुर्गम रास्तों को पार अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाने के अलावा उनके आधार कार्ड, समग्र आई डी, अपार आई डी, जाति प्रमाण पत्र बनवाने, बैंक खाता खुलवाने उसमें सुधार करवाने, छात्रों के प्रोफाइल पंजीयन, मैपिंग, जैसे दर्जनों कार्यों के लिए विद्यालय से बाहर आए दिन दौड़ धूप करनी पड़ती है। बरसाती दिनों में नदी नाले में बाढ़ आदि का भी सामना करके स्कूल पहुंचना होता है। बहुत से दुरूह क्षेत्रों में आज भी मोबाइल में नेटवर्क नहीं मिलता है, ऐसे में शिक्षक द्वारा अपने मोबाइल से स्कूल खुलने और बंद होने के टाइम पर हाजिरी लगाना एक दम अव्यवहारिक है। जहां शिक्षक अपने पढ़ाने के मूल कार्य के अतिरिक्त विद्यार्थियों के हित से जुड़े व्यक्तिगत कार्यों को भी पूर्ण कराता है, ऐसे में शिक्षकों के कार्यों का आकलन सिर्फ मशीनरी के द्वारा करना अनुचित और अन्याय पूर्ण है। *ई अटेंडेंस का मामला न्यायालय में लंबित*
उल्लेख है कि पूर्व में 2अप्रैल 2018 से भी एम शिक्षा मित्र के माध्यम से ई अटेंडेंस लगाने के निर्देश दिए गए थे तब ई-अटेंडेंस लगाने के स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश के खिलाफ डी के सिंगौर सहित 53 अध्यापक और शिक्षकों ने मिलकर एम शिक्षा मित्र के माध्यम से स्वयं के मोबाइल द्वारा अटेंडेंस लगाने और उसी आधार पर वेतन बिल जनरेट किये जाने वाली कन्डिका को न्यायालय में चुनौती दी थी और उस पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने याचिका में कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों वाली अधिकांश शालाओं में मोबाइल नेटवर्क नहीं रहता जिससे अटेंडेंस नहीं लग सकेगी और बेवजह उनका वेतन काटा जायेगा। लगभग 30 याचिकाकर्ताओं ने शपथ के साथ बताया था कि उनके स्कूल वाले गांव में नेटवर्क कभी भी नहीं रहता है। याचिका कर्ताओं ने यह भी कहा कि निजी मोबाइल से अटेंडेंस लगवाया जाना उचित नहीं है कर्मचारी इसे घर पर भूल भी सकते हैं गुम या खराब भी हो सकता है ऐसे में स्कूल में उपस्थित होने के बावजूद वेतन काट लिया जायेगा। कोर्ट में यह दलील भी दी गई कि कई कर्मचारी मोबाइल उपयोग नहीं करते हैं उन्हें मोबाइल उपयोग करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है। सरकार द्वारा शिक्षकों को मोबाइल भत्ता भी नहीं दिया जाता है। इस मामले की पहली सुनवाई 2 एप्रिल 2018 को ही कोर्ट में हुई थी लेकिन सरकारी अधिवक्ता ने यह कहकर समय ले लिया था कि मुख्यमंत्री जी ने अध्यापकों और शिक्षकों के विरोध के बाद खुद इस पर रोक लगाने की बात कही है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 14जुलाई 2025को संभावित है।
*पूर्व मुख्यमंत्री ने ई अटेंडेंस को अपमान जनक शर्त बताया* 2अप्रैल 2018 से एम शिक्षा मित्र के माध्यम से लागू की जाने वाली ई अटेंडेंस व्यवस्था का जब शिक्षकों ने विरोध किया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 1अप्रैल 2018को मुख्यमंत्री आवास में शिक्षक संगठनों का कार्यक्रम आयोजित कर उसमें कहा था कि एम शिक्षा मित्र से ई अटेंडेंस एक अपमान जनक शर्त है जिसे में लागू नहीं होने दूंगा उन्होंने यह भी कहा था कि शिक्षकों के मान सम्मान के साथ खिलवाड़ करने इजाज़त किसी को भी नहीं दी जाएगी। श्री शिवराज सिंह चौहान के इस ऐलान के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई।
*हमारे शिक्षक एप से हाजिरी भी अव्यवहारिक* ट्राइबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन ने वर्तमान पोर्टल से ई अटेंडेंस को अव्यवहारिक बताते हुए कहा है कि अधिकाशं मामलों में शिक्षक की सही लोकेशन ही सर्च नहीं होती वह विद्यालय में होता है और लोकेशन कहीं और की दिखाई देती है। आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय के निर्देश में कहा गया कि यदि जो विद्यालय दोनों समय ई अटेंडेंस लगाएंगे उन विद्यालयों का बिना उच्चाधिकारियों की अनुमति के निरीक्षण नहीं किया जाएगा। यह बात हास्यास्पद है क्या मंशा सिर्फ ई अटेंडेंस को सफल बनाना है, विद्यालय में शिक्षा गुणवत्ता से कोई मतलब नहीं है। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था पर भरोसा करके वेतन व्यवस्था बनाना कई विवादों और समस्याओं को जन्म देगा और जिसके चलते शिक्षक हर समय खुद को तनावग्रस्त महसूस करेगा। एसोसिएशन का मानना है कि बजाए ऐसे अव्यावहारिक योजनाएं लाने से अच्छा अपना मॉनिटरिंग सिस्टम सशक्त करना चाहिए, शिक्षकों से गैर शिक्षकीय कार्य पर पूर्ण रूप से रोक लगानी चाहिए, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक आवास बनाना चाहिए, गोपनीय चरित्रावाली लिखने की वर्तमान व्यवस्था में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। शिक्षकों के मोबाइल से ई अटेंडेंस लगाने और उसे वेतन व्यवस्था से जोड़ने जैसी विवादास्पद योजना की बजाए विद्यालयों में बायोमेट्रिक मशीन लगानी चाहिए। अटेंडेंस कि जो भी व्यवस्था लागू हो वो सभी कर्मचारियों में समान रूप से लागू की जानी चाहिए सिर्फ शिक्षकों के लिए इस तरह की अपमानित करने की योजना जब जब बनाई जाएगी शिक्षक समुदाय उसका विरोध करेगा।
*क्या डिजिटल (तकनीक) पर पूर्ण भरोषा किया जा सकता है प्रति दिन 6 हजार लोगो के साथ फ्रॉड हो रहा है फिर शिक्षा मे e अटेंडेंस के रूप सरकार नवाचार डिजिटल रूप से कर रही है शिक्षकों ही चोर साबित कर अन्य विभागीय लोक सेवको को ईमान दारी का प्रमाण पत्र दे रही उन पर क्यो e अटेंडेंस लागू कर रही है आत्यवश्यक सेवाओ यह पहले होना चाहिए शहरों के स्कूलों मे कुछ प्रतिशत व्यवहारिक हो सकती है लेकिन ग्रामीण दुर्गम स्थानों पर मोबाइल टॉवर न होना, light💡 का न होना बारिश के मौसम मे अचानक नदी नाले बाढ़ आने के कारण रास्ते बन्द हो जाते है जाम लगने से देरी होना आदि समस्या तो रहेंगी साथ ही बहुत से शिक्षक एंड्राइड मोबाइल रखते नहीं है और कुछ को चलाना भी नहीं आता है मोबाइल मे कभी लोकेशन गलत बताता है, UPI/ मनी ट्रांसफर फैल्ड हो जाता है तो क्या एप द्वारा डिजिटल हाजिरी e अटेंडेंस फेल्ड नहीं होगी क्या यदि फेल्ड होगी तो वेतन कटेगा सर्विस ब्रेक होगी क्या यह ऐप पूरी तरह सुरक्षित है इसकी डाटा लीक नहीं होंगे न ही यह हेक होगी, सवाल है कि क्या ऐप बनाने वाली एजेंसी डाउनलोड करने के बाद न्यायालय में लिखित में देगी क्या इसके दुरुपयोग नहीं होगा यदि हुआ तो वह खुद जिम्मेदार होगी डाटा लीक नहीं होगा ना उसको बेचा जाएगा*
*ई अटेंडेंस व्यवस्था व्यावहारिक नहीं और मानवीय संवेदनाओं का भी ध्यान नहीं*