*सिंदूरी भभूत भभकी न ओकी* *चार पीढ़ी ख भसम करी दी* *‘शब्द सुमन’ की सभा में निमाड़ी कविता ने भरी शौर्य की हुँकार*

*समाचार*
*सिंदूरी भभूत भभकी न ओकी*
*चार पीढ़ी ख भसम करी दी*
*‘शब्द सुमन’ की सभा में निमाड़ी कविता ने भरी शौर्य की हुँकार*
सौरभ नाथ की खबर 9039502565
भोपाल। निमाड़ की सोंधी-मटियारी सुगंध का देशज लहजा जब कविताओं में देशभक्ति का जज़्बा लिए गूँजा का सिंदूर शौर्य भी सिर चढ़ कर बोला। मिलन साहित्य प्रकोष्ठ के मंच पर दस्तक देते हुए डॉ. शैलेन्द्र चौकड़े ने हुँकार भरी- ‘‘सिंदूर उजड़्यो थो बेटी न का माथा सी, उ सिंदूरी भभूत भभकी न ओकी चार पीढ़ी ख भसम करी दी’’। दुष्यंत संग्रहालय की चार दीवारी में ‘शब्द सुमन’ की यह सभा टैगोर लोक कला एवं संस्कृति केन्द्र की साझेदारी में मानवीय सरोकारों की अभिव्यक्ति का अनूठा समागम बनीं।
निमाड़ी लोक संस्कृति और साहित्य के अप्रतिम चितेरे पद्मश्री पंडित रामनारायण उपाध्याय की जयंती के उपलक्ष्य में आदरांजलि का यह अवसर रचनात्मक गरिमा से सराबोर था। निमाड़ी लोक कविता के ही जाने-माने हस्ताक्षर दीपक पगारे ‘मोहना’, प्रवीण अत्रे, ब्रजेश बड़ोले और डा. शैलेन्द्र चौकड़े ने अपनी अनूठी काव्य शैली और प्रभावी रचना पाठ से श्रोताओं को निमाड़ की जनपदीय संस्कृति ही नहीं, सीमा पर खड़े सैनिक के बुलंद हौसलों में धड़कती वतन परस्ती का पैगाम भी दिया। सिंदूर से लेकर सोशल मीडिया और रिश्तों-नातों से लेकर मानवीय प्रवृत्ति के विविध रंगों तक कविताओं का इन्द्रधनुष खिलता रहा। दादा रामनारायण के प्रति आदरांजलि के ‘शब्द सुमन’ अर्पित करते हुए दीपक पगारे ने पढ़ा- ‘‘तू निमाड़ को छोरो, तू बोल्या कर निमाड़ी रे घणा लाड़-सी सींची रामा दादा न या वाड़ी रे’’। खरगोन से आए कवि ब्रजेश बड़ोले ने सोशल मीडिया पर कटाक्ष करते हुए कहा- ‘‘फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी न केतरा दोस बणावगऽऽ आखरी म तो दो आगऽऽ न दो पाछऽऽ काम आवगऽऽ, बाक़ी तो ओम सांति लिखी न दोस्ती को फर्ज़ निभावगऽऽ’’। इस अवसर पर स्मृति शेष पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय के जीवन और उनके रचनात्मक व्यक्तित्व से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर लोक संस्कृतिकर्मी वसंत निरगुणे, वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय और समाजसेवी आलोक बिल्लोरे ने अपने भावभीने उद्बोधन दिए।
वक्ताओं ने समग्रतः कहा कि गाँव और गाँधी रामनरायणजी के सृजन का आधार रहे। निमाड़ की लोक संस्कृति के प्रति अध्ययन, शोध, दस्तावेज़ीकरण तथा उसके सुदूर विस्तार के लिए दादा के अनथक प्रयत्न रहे। वे म.प्र. शासन के संस्कृति विभाग की आदिवासी लोक कला परिषद के संस्थापकों में प्रमुख थे। कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने अपने वक्तव्य के दौरान रामनारायणजी द्वारा रचित रूपकों का वाचिक-पाठ भी किया। स्वागत वक्तव्य ‘मिलन’ के अध्यक्ष प्रेम पगारे ने दिया। समारोह में निमाड़ के लोक पर्व संजा पर एकाग्र सचित्र पुस्तिका का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तिका में गीत संकलन और आलेख रचना लोक गायिका आलोचना मांगरोले की है। कार्यक्रम का संचालन मनीष बिल्लोरे ने तथा आभार भारत भूषण ने व्यक्त किया। प्रवीण अत्रे ने हास्य का पुट लेती रोचक कविता सुनाई- ‘‘छत्तीस साल को छोरो छे, न दूर को एक रिश्तेदार ओको गोरो छे, भलई झुकेल ओकी वेस्ट छे, पणऽऽ योज बेस्ट छे’’।