बीते साल इन्हीं दिनों मैंने लिखा था आप तो कमाल करते हो

बीते साल इन्हीं दिनों मैंने लिखा था, आप तो कमाल करते हैं...
सौरभ नाथ की खबर 9039502565
यह कमाल विहान ड्रामा वर्क्स Vihaan Drama Works की प्रस्तुति के बाद विभोर मन ने लिखा था। विहान का अर्थ होता है भोर का समय। विहान अपने हर प्रस्तुति के बाद दर्शकों को विभोर करता है। यह अब स्थापित होता जा रहा है।
इसबार फिर मन बार-बार कह रहा है, आप तो कमाल करते हैं विहान। विहान ने इस बार भी ‘स्वप्नयान’ रचा और क्या खूब रचा। 25 मई 2025 की सांझ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के विथि में मुक्ताकाश मंच पर उतरे ‘स्वप्नयान’ ने अभिभावकों के सपनों को साकार कर दिया तो आगत के कई स्वप्न थमा भी दिए। उम्मीद फिर हरी हुई कि इस दुनिया में खूबसूरत रचा जा रहा है। भोपाल के एक छोटे से हाल में ऐसी आश्वस्ति गढ़ी जा रही है जिसपर हम सब का भविष्य टिका है। एक हौसला जो हमें थक कर बैठना नहीं उड़ान का जज्बा भरता है। 25 दिन चली नाट्य कार्यशाला का समापन जब मंच पर ‘अंधेर जंगल, चौपट्ट शेर’ की प्रस्तुति के रूप उतरा तो वहां मौजूद हर मन एक उजले विश्वास से भर गया। यह विश्वास कि दुनिया में कुछ भी हो जाए, कितना ही बड़ा संकट हो, सृजन ही सहारा रहेगा।
इस मंच पर उतरे 35 बच्चों में कोई कमतर नहीं था। कहीं कोई प्रतिस्पर्धा थी ही नहीं जो कमतर या श्रेष्ठ होने की बात की जाए। सब एक समूह का हिस्सा थे जो अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे थे, बेटन एक दूसरे को थमा कर रिले रेस को पूरी करते सर्जक।
यदि कोई प्रतिस्पर्धा थी तो हर बच्चे की अपनी खुद से। किसी को तुतलाती भाषा में भी अच्छा संवाद बोलना था। किसी को नाचना न आते हुए भी नाचना था। किसी का संवाद था ही नहीं लेकिन उसे अपनी उपस्थित दर्शकों को महसूस करवानी थी। किसी को बड़े संवाद को ऐसे बोलना थे कि दर्शक समझ जाए निर्देशक का कौशल।
और यह सब बच्चों को करना था। 3 साल से लेकर 12-13 साल के बच्चों को।
और वे कर गए। क्या खूब कर गए कि हर मन आल्हादित था, आश्वस्त था। मंच के सामने बैठे बच्चों के अभिभावक ही नहीं अन्य कला प्रेमी थी।
मैं बार-बार आश्वस्ति की बात इसलिए कह रहा हूं कि हम अपने समय का सबसे उथलपुथल भरा दौर जी रहे हैं। ऐसे समय में गहरी रात्रि से घबराया मन ‘विहान’ की तरफ ही तो देखेगा न, भोर के उजास की ओर।
उस मंच में मेरा बेटा ही नहीं था बल्कि मेरे मित्रों के बच्चे भी थे। मैं सभागार में बैठा-बैठा सुन रहा था, देख रहा था, अपने बच्चों के अभिनय से, उसे अपनी सीमा से पार जा कर बेहतर प्रस्तुति देते देख अभिभूत हो रहे माता-पिता अन्य बच्चों के कौशल को देख गदगद थे। अंकों की प्रतिस्पर्धा वाले माता-पिता वहां थे ही नहीं। प्रतिस्पर्धा के युग में परस्परता का की उड़ान ही तो ‘विहान’ है। हमारे समय की भोर।
एक और बात बताऊं? मेरी तरह, कई अभिभावकों ने यह गौर किया होगा। मंच पर एक नन्ही बच्ची थी पाखी। सबसे कम उम्र की। शायद तीन साल। या उतने भी नहीं। वह मुझे तब दिखाई दी थी जब मंच पर दीपप्रज्ज्वलन हो रहा था और वह जवनिका से झांक रही थी। वह वहां जमीन पर ही लोट गई। मैं मुस्कुरा दिया था।
फिर पूरे समय मैंने उसे मंच पर पाया। कभी नृत्य करते बच्चों के साथ तो कभी मंच पर नाटक चल रहा है लेकिन उसे सबसे दूर किनारे खड़े पाया। जब दृश्य बदल रहा था तब सब बच्चे नैपथ्य में जा रहे थे और वह वहीं मंच पर ही बैठ गई। वह पूरे समय मंच पर बनी रही। अपने अभिनय, अपने कौशल के साथ। उसका कोई संवाद नहीं था, लेकिन वह मंच पर थी। उसका मन नहीं था तो कोई एक्ट नहीं करना था लेकिन वह मंच से भागी नहीं। डरी नहीं। ठहरी रही क्योंकि उसे यही सीख मिली थी।
नाटक की प्रस्तुति के पहले भोपाल का मौसम बदल चुका था। हम सभी घबरा रहे थे। नवपता में काले बादल। खुला मंच और नन्हे कलाकार। हे प्रभु, रहम।
ऐसी ही बातों के बीच देवधर ने कहा, ‘ममा, मेरी श्वेता मैम Shweta Ketkar ने कहा है, बादल गरजे, आंधी आए या पानी गिरे। हमें घबराना नहीं है। नाटक करते जाना है। बारिश हो भी गई तो क्या हम तो नाटक करते रहेंगे।’
मैं हैरत में था और जब मंच पर पाखी को देखा तो महसूस हुआ श्वेता मैम का मैसेज बच्चों ने कैसे ग्रहण किया है।
देवधर ने ही मुझे बताया कि निर्देशक सौरभ अनंत सर Sourabh Anant ने सब बच्चों की तरह पाखी के लिए भी ड्रेस बनाने के लिए कहा था। मतलब सब जानते थे कि वह मंच पर कितना कर पाएगी लेकिन उसे होना था और वह रही।
यह सामूहिकता ही तो विहान ड्रामा वर्क्स की ताकत है, इसी के दम पर तो वह कमाल रचता है।
मित्र सीमा-सुनील मिश्र Seema Mishra Sunil Mishra की बेटी अरणी ने तो नि:शब्द कर दिया। डेढ़ दिन से जारी तेज बुखार, लगातार पेट दर्द, डिहाइड्रेशन ने उसे खड़े रहने की ताकत भी छीन ली थी। मगर, वह आई। आई ही नहीं बल्कि मंच पर ऐसी उपस्थिति कि कोई जान ही न सका, भीतर नन्ही किस तकलीफ को परास्त कर रही है।
मुझे अपने शिक्षकों की सारी बातें याद आईं और मैं उन सूत्रों को यहां फलीभूत होते देख नतमस्तक था।
मित्र आशीष गोस्वामी Ashish Goswami की बेटियों ईशा Isha Goswami और ग्रेसी सारे बच्चों की दीदी नहीं टीम में अनुशासन, स्नेह और देखभाल का उदाहरण हैं।
मित्र चानी-किंशुक Chani Trivedi Kinshuk Trivedi की बेटियों मीरा और गौरी को अभिनय करते देख लगता है, अपने आसपास कितना सुंदर तत्व बसा हुआ है। कौन जानेगा कि परिपूर्ण भाव विन्यास पेश कर ही गौरी पहली बार मंच पर उतरी है।
लगता है, यहां नहीं होते तो जान ही नहीं पाते कि हमारे आसपास के बच्चे कितनी प्रतिभा, कितने कौशल और कितनी लगन के धनी हैं।
अंत में चलते, चलते, मैंने अंकित सर Ankit Paroche ने कहा, आपका परिश्रम रंग लाया। वे बोले, ‘परिश्रम कहां सर, हम तो आनंद से करते हैं।’
यही तो विहान की ताकत है, कला की ताकत।
पूरी विहान टीम में किस-किस का नाम लूं? हम घर में दो बच्चों को संभाल नहीं पाते। उन्होंने 35 बच्चों को पूरे 25 दिन संभाला। संभाला ही नहीं तराशा। सब बच्चों को एक जैसा नहीं, जो जैसा है, जैसे हुनर वाला वैसा तराशा।
यह केवल समर क्लास नहीं है जो काम खत्म और छुट्टी। मैंने देखा कि जो बच्चे पिछली कार्यशालाओं में साथ थे और अब बड़े हो चुके हैं, वे भी नैपथ्य में दायित्व संभाल रहे थे। उन्हें विहान ने बुलाया नहीं था, वे खुद आए थे, अपनी जवाबदेही चिन्ह कर।
यही जुड़ाव ही तो विहान की ताकत है।
यहां मुझे अब्राहम लिंकन का खत याद आता है जिसमें वे लिखते हैं,
'प्रिय शिक्षक, मेरा बेटा आज से स्कूल की शुरुआत कर रहा है. इस जीवन को जीने के लिए उसे विश्वास, प्रेम और साहस की जरूरत होगी। तो प्रिय शिक्षक, क्या आप उसका हाथ पकड़कर उसे वह सब सिखाएंगे, जो उसे जानना चाहिए, जो उसे सीखना चाहिए। उसे सिखाएं मनुष्यों के साथ नरमी और कोमलता से पेश आना। उसे कठोर लोगों के साथ थोड़ा सख्त होना भी सिखाएं। यदि आप कर सकते हैं तो उसे सिखाएं कि जब वह दुख में हो कैसे मुस्कुराए। उसे सिखाएं कि आंसुओं में कोई शर्म की बात नहीं है। उसे अपने विचारों में विश्वास करना सिखाएं, भले ही हर कोई उसे गलत क्यों न कह रहा हो। मेरे बेटे को यह शक्ति देने की कोशिश करें कि जब सब लोग एक दिशा में जा रहे हों तो वह भीड़ के पीछे न चले।'
विहान ने यह बात समझी है। ... सौरभ सर की दृढ़ता, हेमंत सर Hemant Deolekar की कोमलता, श्वेता जी कला बारीकियां, अंकित सर की विविधता और सर्वश्री अंश जोशी, रुद्राक्ष भायेरे Rudraksh Bhayre, ईशा गोस्वामी, ग्रेसी गोस्वामी, दीपक यादव, रवि अहिरवार, नवीन मिश्रा, शिव मोहन यादव, नीरव पाण्डेय, निकिता कटारिया, आरती धुर्वे, अभय शर्मा, आयुष लोखंडे, राहुल सेन, विवेक धाकड़ की एकजुटता, समर्पण और लगन विहान की उड़ान है।
मंच पर दाहिने साजिंदे बैठे थे। इनमें सुश्री तेजस्विता अनंत Tejaswita Anant भी थीं। जिस तरह बच्चे अपनी सीमाओं से परे जा कर विस्मयजनक प्रदर्शन करते हैं हमने देखा है कि उसी तरह तेजस्विता ने भी नाम के अनुरूप अपने तेज से सारी बाधाओं व कष्टों को परे हटा कर अपनी गाढ़ी उपस्थिति रचना सीख लिया है।
मुझे अक्सर लगता है कि विहान जैसी संस्थाओं से हमारी अपेक्षाएं तो बहुत होती है लेकिन उनके प्रति हमें या समाज को जितना करना चाहिए उतना हम करते नहीं है। अल्प संसाधनों के साथ आखिर ऐसी संस्थाएं चलेंगी कैसे?
ऐसे में सम्मानीय रघुराज सिंह जी Raghuraj Singh और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय IndiraGandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya का जिक्र करना भी आवश्यक समझता हूं जिन्होंने विहान को आवश्यक साथ दिया।
यहां लिखी गई बातें एक भावुक मन की प्रतिक्रिया या एक कृतज्ञ पिता का बयान लग सकती है क्योंकि विहान की जिन विशिष्टताओं का मैंने उल्लेख किया वे तो सदियों से श्रेष्ठता का पैमाना रही हैं। इन्हीं पर खुद को परिष्कृत कर, मांज कर, खरा साबित कर कई संस्थाएं और व्यक्ति कार्य कर रहे हैं।
लेकिन विहान के संदर्भ में एक और विशिष्टता है जो इसे थोड़ा आगे रखती है। वह है सातत्य l Continuity.
निरंतरता के बिना हर श्रेष्ठतर कार्य भी समय के पहले व्यर्थ हो जाता है।
इस निरंतरता को देख ही मुझे समझ आता है कि क्यों सौरभ अनंत को कुँवर नारायण की यह कविता पसंद है:
इतना कुछ था दुनिया में
लड़ने-झगड़ने को
पर ऐसा मन मिला
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा
और जीवन बीत गया...
गहरे निशा काल में विहान (भोर) से हमारा मन ऐसा ही लगा रहे और जीवन बीत चले यूं ही सुंदर-सुंदर रचते हुए।
खूब कृतज्ञता टीम विहान के प्रति 💐