*टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के वृन्दगान*

*पर थिरक उठा बहिरंग*

*‘सदानीरा' के पूर्वरंग में छलकी*

*जल गीतों की गागर*

 

सौरभ नाथ की खबर 9039502565

भोपाल। जल और जीवन के सांस्कृतिक ताने-बाने में गुंथे तरानों का संगीत ‘सदानीरा’ के पूर्वरंग की सभाओं को अनूठी गमक से भरता रहा। टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कलाकारों ने भारत भवन के बहिरंग में जैसे ही लय-ताल पर लहराती अलमस्त आवाज़ों में पानी की कहानियों का सुरीला सिलसिला शुरू किया तो आसपास इकट्ठा हुआ जन समुदाय भी ढोलक से उठती थापों पर थिरक उठा। नदिया नीर से भरी... जल के भंडार भरों गांव में.... पानी धरती और हवा को बारंबार प्रणाम... पानी रोको भाई... नरबदा मैया हो... यमुना तट श्याम खेलत होरी... संग नवल राधिका गोरी... परंपरा के लोक रंगों में नदी, समंदर, झील, तालाब और झरनों से छलकता रहा जीवन का राग। गीतों की लड़ियाँ माहौल को महकाती रही। वृन्द गान का यह सिलसिला बुधवार शाम चरम पर पहुँचा। गीतों के सुर छिड़ते ही ताल पर ताल देता दर्शकों का हुजूम भी झूम उठा। उत्सव के आगोश में ‘सदानीरा’ की ये शाम एक सुरीली याद बन गयी। साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी संतोष चौबे के मार्गदर्शन में जल गीतों के वृन्दगान का संगीत संयोजन संतोष कौशिक ने किया। प्रबंध-संचालन अविजीत सोलंकी, चैतन्य आठले, मॉरिस लाजरस, विक्रांत भट्ट और चैतन्य ने किया। समन्वयक-सहयोग कला समीक्षक विनय उपाध्याय का रहा।